शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

ऐसा भी एक मिशन

यार छोटे! तुम तो कहते थे कि यहां सबसे आसान काम कुछ है तो वो है लड़की पटाना.लेकिन साला दो महीना हो गया है हमसे तो कुछ भी नहीं हुआ.तुम तो बहुत चिल्ला रहे थे नॉर्थ कैंपस नॉर्थ कैंपस.हम तो साला तुम्हारे कहने पर ही यहां संस्कृत ऑनर्स में एडमिशन ले लिए और अब कुछ उम्मीद नहीं दिख रही.हमको तो लग रहा है कि अब हमारा अच्छा वाला चूतिया कट गया.........कल मल्का गंज में राहुल चाय वाला,पटेल चेस्ट पर सोडा वाला और विजय नगर के रॉयल पैलेस का कुल्चे वाला सब कह रहे थे कि सर मैडम कब आ रही हैं,आप इतने दिन से गोली दिए जा रहे हैं.हमको तो साला घिन्नाने लगा है कैंपस.कहीं रिटर्न टिकट न करना पड़ जाए......माहौल देख कर तो लग रहा है हम ही इतने चूतिए हैं.मिशन फेल हो रहा है और हमसे न होगा..इज्जत फोकट में जा रही है

(दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में ऐसे मिशन के लिए भी एडमिशन लिए जाते हैं)

विस्थापन

आरज़ू पैकिंग ठीक से हो गई है न?इस बार मम्मी-पापा और बाकी लोगों को शिकायत का कोई मौका नहीं देंगे....
रियाज़! ये शहर भी कितना अजीब है न..इसने हमें शौहरत,इज्जत,दौलत सब कुछ दिया.लेकिन आज तक ये शहर अपना न हो सका.वो अपनापन तो हमारे उन छोटे कस्बों की मिट्टी में ही बसा है जहां हमारा बचपन बीता....

ठीक कह रही हो आरज़ू....पूरा दशक इस शहर में बीत गया.लेकिन हर बार सारी खुशियां-त्यौहार हमने अपनों के साथ उसी जमीन पर मनाई है.सब कुछ देकर भी ये शहर हमारे दिल से जुड़ नहीं सका....लेकिन आज इस शहर ने हमारी आंखें भीगो दीं.वो शहर जिसे हम हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर जा रहे हैं.......

आकांक्षा

प्रिया तुम अपने पति को सिर्फ इसलिए छोड़ना चाह रही हो.....देखो मैं कोई फेमिनिस्ट नहीं हूं कि यूं ही तुम्हारा केस ले लूं
देव,ध्रुव मेरे लिए अच्छा इंसान है,,,,लेकिन सबकुछ करते हुए भी उसे मेरे जॉब करने पर एतराज़ है.हमारी सोच नहीं मिलती.इसलिए मैंने फैसला कर लिया है
प्रिया अगर बुरा न मानो तो मैं एक बार ध्रुव से बात कर लूं..!!
कोई फायदा नहीं देव.मैंने कोशिश कर के देख लिया.अब और नहीं झेल सकती.
मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि आखिर तुम्हें काम करने की ज़रूरत ही क्या है?क्या कमी है? सब कुछ तो है तुम्हारे पास.

मेरी आजादी नहीं है.मैं अपने मन का कुछ नहीं कर सकती.मेरी कोई पूछ नहीं.हो सकता है कई लड़कियां इस तरह की जिंदगी जीने के लिए मरती हों.मेट्रो सिटी में फ्लैट हो,बड़ी गाड़ी हो,नौकर हो,साल में दो बार पति के साथ फॉरेन टूर पर जाएं.........मगर मेरा दम घुटता है यहां.मुझे ये सब कुछ नहीं चाहिए.अपनी अलग पहचान बनानी है,तरक्की करनी है.अब भी बहुत कुछ सीखना है...अपनी शर्तों पर जिंदगी जीनी है मुझे

उम्मीद

शालिनी अपना घर छोड़कर इस उम्मीदों के शहर नोएडा में आई है...........वो पीले रंग का सूट पहनकर नोएडा सेक्टर 15 के गोलचक्कर के पास पम्फ्लेट बांट रही है,किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट का इश्तेहार सा लगता है.इस काम के लिए उसे दस रूपये सैकड़ा के हिसाब से मिल जाते हैं.इसके अलावा शालिनी कॉल सेंटर में भी काम करती है.वो अपने शहर उन्नाव वापस कभी नहीं जाना चाहती जहां पर अवसर के नाम पर सिर्फ शादी थी,जहां से वो अपने परिवार से लड़ झगड़ कर आई है,अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए.छोटे शहर से आने के बावजूद शालिनी की उड़ान छोटी नहीं है,वो उमंगों से भरी है.वो अपने मौजूदा काम से संतुष्ट नहीं है,उसमें कुछ बड़ा करने की तड़प है...!!

ब्रेकअप बाय चांस!

 प्रिया तुमसे कितनी बार कहुं कि इस वक्त मुझे फोन मत करो.मूड खराब है मेरा.तुम क्यों नहीं समझती कि मैं कितना परेशान हूं.रोज़ एक्सक्लूसिव स्टोरी चाहिए.अब टेलीविज़न में मेरा दम घुटता है.मोदी,मनमोहन और शाहरूख की खबर तो पहुंचा रहा हूं.लेकिन इस पूरे प्रोसेस में मेरा जो हाल होता है,उसे कैसे बताऊं?और तुम भी तो मुझे नहीं समझ रही...
ओहो सचिन...! तभी तो कह रही हूं कि आज कहीं बाहर चलते हैं.डिनर का क्या खयाल है?और आज मुझे जल्दी छुट्टी भी मिल जाएगी....
नहीं प्रिया,आज नहीं.मुझे कुछ नया करने का मन है.मैं इस तरह के रुटीन जॉब से उकता गया हूं.मैं कुछ ऐसा चाहता हूं जहां मैं अपनी शर्तों पर काम कर सकूं,कुछ नया और अपने मन का....
बस! बहुत सुन ली तुम्हारी बक-बक.तुम्हें क्या लगता है?मैं आठ घंटे कॉल सेंटर में केवल झक मारती हूं....जो भी परेशानियां झेलते हो तो सिर्फ तुम.मैं यहां ऐश करती हूं.....तुम क्या जानो मुझे यहां आठ घंटे सांस भी नहीं ली जाती.ऊपर से कितने गिद्धों की नजरें मुझे घूरती हैं.और ये सब मैं अकेले झेलती हूं-सिर्फ तुम्हारे लिए.मैंने तो कभी शिकायत नहीं की.और तुम..!कितनी छोटी सोच है तुम्हारी.माय फुट
प्रिया तुम बेवजह बात को बढ़ा रही हो.मैंने ऐसा तो कभी नहीं कहा कि मैं तुम्हारी कद्र नहीं करता.बस इस वक्त मैं परेशान हूं...और तुम मुझ पर चढ़ रही हो.
देखो सचिन! मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहती.... और न ही मैं जता रही हूं कि मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है.अगर तुम्हें ठीक नहीं लगता तो सब खतम करते हैं.तुम जाओ अपने रास्ते.करो जो करना चाहते हो..
अच्छा तो ये बात है.अब मैं समझा कि तुम दो हफ्तों से मुझसे कटने का बहाना ढूंढ रही थी.यू बिच! ड्रॉप दी फोन.....
कट

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

लाईव कमेंट्री- मेट्रो

मतलब मैं कैलकटा गई थी तो आपने उसे घर बुला लिया. छिः इतनी गंदी हरकत नोएडा सेक्टर 18 मेट्रो में चढ़ी औरत दरवाज़े के कोने में खड़ी होकर काफी नरम लहज़े में अपने पति को फोन पर सुना रही थी.मैं बगल में खड़े होकर बाकि लोगों के साथ चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था.
आपने मेरी फ्रेंड को मेरे घर में बुलाया.
हां बस फ्रेंड ही तो है.आप भी कैलकटा जाना तो मैं भी आपके फ्रेंड्स को घर बुलाउंगी और फिर उससे आपको पता चलेगा कि वो आपके घर गया था.आपकी गैर मौजूदगी में.फिर मैं भी कहूंगी.बस फ्रेंड ही तो है.
ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है.वाइफ घर में नहीं है तो उसे घर बुला लोगे!वो मुझसे कह रही थी तुम्हारे घर में यहां ये चीज रखी हुई है.किचन की लोकेशन ये है.उसे मेरे घर के बारे में कैसे पता,जब वो कभी मेरे घर नहीं आई.....
मैंने आपको रोका था क्या?वो अगर आपकी गर्लफ्रेंड है तो आप उससे बाहर मिल लेते.लेकिन वो मेरे घर आई.....
मुझे तो शुरु से आप पर भरोसा नहीं था.लेकिन मैंने सोचा कि एक छोटी बच्ची है.लाइफ खराब हो जाएगी.लेकिन अब तो कुछ बचा ही नहीं है.क्या बताऊं...
मयूर विहार फेज़ 1 स्टेशन पर उतरकर वो चली गई.